लद्दाख में राज्य का दर्जा और Sixth Schedule की मांग को लेकर चल रहे विरोध प्रदर्शन बुधवार को हिंसक हो गए। प्रदर्शनकारियों ने BJP ऑफिस को आग के हवाले कर दिया और पुलिस को भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े।
Protest में बढ़ी हिंसा
- एक्टिविस्ट Sonam Wangchuk ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि पुलिस फायरिंग में 3 से 5 युवकों की मौत हुई है और कई लोग घायल हुए हैं।
- Wangchuk ने युवाओं से संयम बरतने और हिंसा से दूर रहने की अपील की। उन्होंने कहा कि हिंसा आंदोलन की मांगों को कमजोर करती है।
- प्रदर्शन उस समय भड़क उठे जब दो बुजुर्ग अनशनकारियों की तबीयत बिगड़ गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। इसके बाद छात्र और युवाओं ने शहर बंद (shutdown) का आह्वान किया।
BJP ऑफिस और गाड़ियों में आग
गुस्साई भीड़ ने BJP दफ्तर और एक सुरक्षा वाहन को आग के हवाले कर दिया। इसके बाद इलाके में भारी संख्या में पुलिस और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई।
Wangchuk ने X (Twitter) पर लिखा –
“बहुत दुखद घटनाएं हुईं। मेरी शांति की अपील आज असफल रही। युवाओं से गुजारिश है कि हिंसा बंद करें, इससे केवल हमारी मांगों को नुकसान होता है।”

Protest की पृष्ठभूमि
- Ladakh में आंदोलन की शुरुआत Article 370 हटाए जाने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन कानून, 2019 के बाद हुई।
- जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांटा गया – J&K (with legislature) और Ladakh (without legislature)।
- सीधे केंद्र शासित होने के बाद Ladakh के लोगों ने राज्य का दर्जा और Sixth Schedule की मांग तेज कर दी है।
Sixth Schedule क्यों?
- Sixth Schedule का प्रावधान भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए है, जहां tribal-majority areas को legislative और financial autonomy मिलती है।
- Ladakh की 90% आबादी Scheduled Tribes से है।
- इसी आधार पर लोग चाहते हैं कि Ladakh को Sixth Schedule में शामिल किया जाए ताकि स्थानीय लोगों के अधिकार और संसाधनों की सुरक्षा हो सके।
Hunger Strike और Talks
- Sonam Wangchuk और कई एक्टिविस्ट्स पिछले 35 दिनों से अनशन पर बैठे थे।
- हालांकि बुधवार को हिंसा भड़कने के बाद अनशन को फिलहाल स्थगित कर दिया गया।
- केंद्र सरकार ने अगली वार्ता 6 अक्टूबर को तय की है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि वार्ता की तारीख आगे बढ़ाई जाए।
क्यों है यह आंदोलन अहम?
- Ladakh की भौगोलिक और जनजातीय पहचान को बचाने के लिए Sixth Schedule एक कानूनी ढाल माना जा रहा है।
- स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना राज्य के दर्जे और Sixth Schedule के, उनकी सांस्कृतिक पहचान और संसाधनों पर खतरा मंडरा रहा है।
- हिंसा भले ही आंदोलन के मकसद को कमजोर करती हो, लेकिन इसने Centre पर दबाव जरूर बढ़ा दिया है।

निष्कर्ष
Ladakh का यह आंदोलन सिर्फ राजनीतिक मांग नहीं है, बल्कि यह लोगों की पहचान, संस्कृति और अधिकारों की लड़ाई है।
Donald Trump या Elon Musk जैसी global headlines से इतर, यह मुद्दा भारत की आंतरिक लोकतांत्रिक चुनौती को सामने लाता है। आने वाले महीनों में यह तय होगा कि Centre और Ladakh के नेताओं के बीच संवाद इस संकट को शांतिपूर्ण तरीके से हल कर पाता है या नहीं।